रात के समय हम आकाश में असंख्य तारों को रोज
देखते हैं l इनमें कुछ बहुत चमकीले होते हैं, तो कुछ बहुत ही मंद प्रकाश देते हैं
l कुछ आकार में छोटे दीखते हैं, तो कुछ बड़े l कुछ का तापमान बहुत अधिक होता है, तो
कुछ का तापमान कम l तारों को देखकर हमारे मन में यह प्रश्न उठता है कि इनकी उत्पति
कैसे हुई ?
वास्तव में ये तारे अंतरिक्ष में फैले हुए
धुल के कण और गैस कणों के बादलों से बनते हैं l अंतरिक्ष में फैले हुए कणों और गैसों
का कोई बदल जब अपने गुरुत्वबल (Gravity) के कारण सिकुड़ना शुरू करता है, तो एक गोले
का रूप धारण कर लेता है l ऐसे बादलों का भर तारे के विकास के लिए सूरज के भार से
कई हज़ार गुना अधिक होना जरुरी है l जब बदल का सिकुड़ना शुरू होता है, तो सिकुड़ने के
दबाव के कारण ताप पैदा होता है l इस ताप का कुछ हिस्सा विकिरण द्धारा इधर-उधर
विखरता है, जो इस बदल को और सिकुड़ने में मदद करता है l एक ऐसी स्थिति भी आती है,
जब यह बदल कई टुकड़ों में टूट जाता है और हर एक टुकड़ा सिकुड़ना जरी रखता है l जब ये
टुकड़े बहुत ही गर्म हो जाते हैं, तो इनमें से प्रकाश निकलने लगते है और इस प्रकार
हर चमकाने वाला टुकड़ा एक स्वयं चमकने वाले तारे का रूप धारण कर लेता है l ये गोले
और भी अधिक सिकुड़ते ही जाते हैं और ये तब तक सिकुड़ना जरी रखते हैं जब तक कि इनके
केन्द्रों का तापमान लाखों डिग्री सेंटीग्रेट न हो जाए l इस तापमान पर ताप नाभिकीय
क्रियाएं आरम्भ हो जाती हैं l ये कियायें ठीक वैसी ही होती हैं, जैसी एक हाइड्रोजन
बम में होती हैं l इन ताप नाभिकीय कियाओं में हाइड्रोजन के चार नाभिक मिलकर हीलियम
का नाभिक बनाते हैं l इन्हीं कियाओं के फलस्वरूप तारों से उर्जा निकलती रहती है l ये
तारे तब तक जीवित रहते हैं, जब तक इनके अन्दर की हाइड्रोजन दस प्रतिशत शेष न रह
जाए l इनका जीवन काल अरबों वर्ष होता है l सूर्य भी एक तारा मन जाता है l उसमें भी
इसी तरह ताप नाभिकीय क्रियाएं हो रही हैं, जिसके फलस्वरूप हमें सतत रूप से उर्जा
मील रही है l यह अनुमान किया जाता है कि हमारा सूर्य लगभग दस अरब वर्ष तक रहेगा l
इसका आधा समय आब तक पूरा हो चूका है l इस प्रकार तारों की उत्पति और अंत होता रहता
है l ................
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