शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

Tongue / जीभ

मनुष्य के पास ज्ञान प्राप्त करने के लिए पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं : आंख, नाक, कान, त्वचा और जीभ l इनमें से जीभ स्वाद का ज्ञान कराती है l
     जीभ मुंह के भीतर स्थित है l यह पीछे की ओर चौड़ी और आगे की ओर पतली होती है l यह मांसपेशियों को बनी होती है l इसका रंग लाल होता है l इसकी ऊपरी सतह को देखने पर हमें कुछ दानेदार उभार दिखाई देते हैं, जिन्हें स्वाद कलिकाएं कहते हैं l ये स्वाद कलिकाएं कोशिकाओं से बनी हैं l इनके ऊपरी सिरे से बल के समान तन्तु निकले होते हैं l
     ये स्वाद कलिकाएं चार प्रकार की होती हैं, जिनके द्धारा हमें चार प्रकार के मुख्य स्वादों का पता चलता है l मीठा, कद्द्वा, खट्टा, और नमकीन l जीभ का आगे का भाग मीठे और नमकीन स्वाद का अनुभव करता है l पीछे का भाग कद्द्वे स्वाद का और किनारे का भाग खट्टे स्वाद का अनुभव करता है l जीभ का मध्य भाग किसी भी प्रकार के स्वाद का अनुभव नहीं कराता, क्योंकि इस स्थान पर स्वाद कलिकाओं का अभाव रहता है l
     स्वाद का पता भोजन की तरल अवस्था में ही चलता है l भोजन का कुछ अंश लार में धुल जाता है l लार में धुला हुआ यह भोजन स्वाद-कलिकाओं को कियाशील कर देता है l खाध पदार्थों द्धारा एक रासायनिक किया होती है, जिसके फलस्वरूप तन्त्रिका आवेग (Nerve Impulses) पैदा हो जाते हैं l ये आवेग मस्तिष्क के स्वाद केन्द्र तक पहुंचते है और स्वाद का अनुभव देने लागते हैं l
     किसी खाध-पदार्थ के पुरे स्वाद के लिए जीभ के आलावा अन्य ज्ञानेन्द्रियां भी सहयोग देती हैं l गंध भी स्वाद का एक अंग है , जिसका अनुभव नाक से होता है l यही कारण है कि जुकाम हो जाने का पूरा-पूरा स्वाद नहीं मील पता और वह फीका-फीका लगता है l
     एक बालक की अपेक्षा एक प्रौढ़ (Adult) की जीभ पर स्वाद कलिकाओं की संख्या अधिक होती है l प्रौढ़ व्यक्ति की जीभ पर लगभग 3000 स्वाद कलिकाएं होती हैं l आयु के बढ़ने के साथ स्वाद कलिकाएं शिथिल होने लगती हैं और फिर निष्क्रिय होने लगती हैं l एक 70 साल की आयु के आदमी की जीभ पर कुल 800 स्वाद कलिकाएं शेष रह जाती हैं l
     पेट की खराबी या कव्ज से जीभ पर मैल जैम जाता है l जिससे हमें वस्तुओं का स्वाद बदला-बदला लगता है l वास्तव में जीभ पर मैल जैम जाने के कारण खाध पदार्थों के अणु स्वाद कलिकाओं तक आसानी से पहुंच नहीं पाते इसलिए हमें खाध पदार्थों का स्वाद बदला-बदला लगता है l बुखार आने पर या गर्म वस्तु खाने-पीने से भी ये स्वाद कलिकाएं कुछ शिथिल या निष्क्रिय हो जाती हैं और फलस्वरूप भोजन का पूरा-पूरा स्वाद हमें नहीं मील पाता l

     शराब, कोको और फलों के रस का पता उनकी गंध से ही चलता है l जब ये रंस मुंह में जाते हैं, तो उनके स्वाद का पता जीभ को लग जाता है और गन्ध नाक के पिछले भाग में चली जाती है l वहां से इसकी सूचना गन्ध तंत्रिकाओं द्धारा मस्तिष्क को मील जाती है l इस प्रकार स्वाद का पूरा आनंद मील जाता है l ...............   

6 टिप्‍पणियां:

AYURVEDA / आयुर्वेद

  आयुर्वेद भारतीय उपमहाद्वीप में ऐतिहासिक जड़ों के साथ एक वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली है। आयुर्वेद का सिद्धांत और व्यवहार छद्म वैज्ञानिक है। भ...