जब हम जमीन पर खड़े होते हैं और सूरज कि रोशनी
हमारी शारीर पर पड़ती है, तो जमीन पर हमें अपनी परछाई दिखती है l ठीक इसी प्रकार
चन्द्रमा और पृथ्वी पर सूर्य के प्रकाश के पड़ने पर परछाइयां आकाश में बनती हैं l
चुकि पृथ्वी और चन्द्रमा का आकार गोल है, इसलिए इसकी परछाइयां शंकु के आकार कि
होती हैं l ये परछाइयां बहुत लम्बी होती हैं l जो पिण्ड सूरज से जितनी अधिक दुरी
पर होगा, परछाइयां भी उतनी ही अधिक लम्बी होंगी l ग्रहण का अर्थ है , किसी पिण्ड
के हिस्से पर परछाई पड़ने से कालापन (अंधेरा हो जाना) l
हम जानते है कि पृथ्वी सूर्य कि परिक्रमा
करती है और चन्द्रमा पृथ्वी कि परिक्रमा करता है ये दोनों ही हज़ारों मिल लम्बी
परछाइयां बनाते हैं, घूमते-घूमते जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा एक ही सीधी रेखा
में आ जाते है, तथा पृथ्वी, सूर्य और चन्द्रमा के बीच में होती है, तो पृथ्वी कि
परछाई या छाया, जो सूर्य के विपरीत दिशा में होती है, चन्द्रमा पर पड़ती है l यह भी
कह सकते है. कि पृथ्वी के बीच में आ जाने से सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा पर नहीं
पहुच पाता l जितने स्थान पर प्रकाश नहीं पहुच पता, उतना स्थान प्रकाश रहित (अन्धकार
युक्त) हो जाता है l यही चन्द्रग्रहण कहलाता है l ऐसी स्थिति पूर्णिमा के दिन ही आ
सकती है l इसलिए चन्द्रग्रहण जब भी होता है, केवल पूर्णिमा के दिन ही होता है l चन्द्रमा
का जितना हिस्सा परछाई से ढक जाता है, उतना ही चन्द्रग्रहण होता है l यदि पृथ्वी
कि छाया पुरे चन्द्रमा को ढक लेती है, तो पूर्ण चन्द्रग्रहण हो जाता है l आमतौर पर
एक वर्ष में चन्द्रमा के तीन ग्रहण होते हैं l जिनमें एक पूर्ण चन्द्रग्रहण होता
है l
अब प्रश्न उठता है कि पूर्णिमा तो हर महीने
होती है, लेकिन चन्द्रग्रहण तो हर मास नहीं होता l इसका कारण यह है कि चन्द्रमा के
घुमने के रास्ते का ताल पृथ्वी के भ्रमंपथ के ताल के साथ 5 डिग्री का कोण बंटा है
l इस कारण चन्द्रमा पृथ्वी कि छाया के स्तर से उपर निचे घूमता है l कभी-कभी ही ये
तीनों एक सीधे में आते हैं l अत: चन्द्रग्रहण हर पूर्णिमा को नहीँ पड़ता l गणित का
प्रयोग करके खगोलविद् आसानी से यह बता देते हैं कि चन्द्रग्रहण कब पड़ेगा और वह
कितने समय रहेगा l ..............
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