सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

Glasses / चश्मा



     चश्मे का चलन आज एक आम बात हो गई है l बूढ़े, बच्चे और जवान, जिनकी दृष्टी कमजोर होती है, सभी चश्में का इस्तेमाल करते हैं l वैज्ञानिकों ने आज ऐसे चश्मे बनाने के तरीके निकाल दिए हैं, जिनके द्वारा दूर कि और नजदीक की साफ न दिखाई देने वाली वस्तु स्पस्ट देखी जा सकती है l आज ऐसे भी चश्मे बन गय हैं, जिनके लेन्स आंखों के अंदर लगा दिए जाते हैं l क्या तुम जानते हो कि चश्मे की खोज कब हुई और चश्मे कि सहायता से वस्तुएं स्पष्ट कैसे दिखाई देती हैं ?
     चश्मे कि सुरुआत लगभग 750 वर्ष पहले हुई थी l 1266 में इंगलैंड के रोजर बेकल (Roger Bacon) नामक व्यक्ति नी किताब पर लिखे अक्षरों को बड़ा करके देखने के लिए कांच के एक टुकड़े का इस्तेमाल किया l कांच का यह टुकड़ा एक गेंद के आकार के शीशे में से कटा गया था l लेकिन निश्चयपूर्वक यह मालूम नहीं कि ऐसे कांच के टुकड़ों को चश्मों के रूप में कब इस्तेमाल किया गया l
1352 में बनाए गए कार्डिनल उगोन (Cardinal Ugon) नामक एक व्यक्ति के चित्र में आंखों पर चश्मा लगाया हुआ दिखाया गया है l इससे यह सिद्ध होता है कि चश्मे कि खोज 1266 – 1352 के बीच में ही हुई l 16 वीं सदी तक चश्मों का प्रचलन काफी हो गया था l 1784 में बेन्जामिन फ्रेंक्लिन (Benjamin Franklin)ने द्दिफोक्सी (Bi-focal) लेन्सों के निर्माण से चश्मों की दुनियां में क्रांति ला दी l अब प्रश्न यह उठता है कि चश्मे से हमें साफ-साफ कैसे दिखाई देता है ?
हमारी आंख एक कैमरे कि तरह काम करती है l आंख कि कामी पुतली के बीच से प्रकाश कि किरणें अंदर प्रवेश करती हैं l आंख के अंदर एक कान्वैक्स लेन्स होता है और इस लेन्स के पीछे एक पर्दा जिसे रेटीना (Retina) कहते हैं l वस्तु से आने वाली प्रकश की किरणें लेन्स कि सहायता से वस्तु का प्रतिबिम्ब (Image) रेटीना पर बनाती हैं l मस्तिष्क इस प्रतिबिम्ब को सीधा कर देता है और वस्तु हमें साफ दिखाई पड़ जाती है l यदि आंख में कोई दोष नहीं है, तो इस लेन्स कि फोकस दूरी अपने आप समायोजित हो जाती है और वस्तु का प्रतिबिम्ब हमेशा ही ठीक रेटीना पर बनता है, परन्तु कभी-कभी आंख में कुछ दोष उत्पन्न हो जाते हैं, जिनकी वजहं से प्रतिबिम्ब रेटीना के आगे या पीछे बंटा है l इस कारण वस्तु धुंधली दिखाई देती है l जिव लोगों की आंखों की आंखों में ऐसे दोष पैदा हो जाते हैं, उन्हें चश्मे कि आवस्यकता होती है l आंख के दोष मुख्या रूप से तीन प्रकार के होते हैं l
दुरान्धता दोष (Myopia) :- पहले दोष को दुरान्धता दोष (Myopia) कहते हैं l जिस व्यक्ति कि आंख में यह दोष होता है, उसे पास की वसतुएं तो साफ दिखाई देती हैं, लेकिन उसे दूर की वस्तुएं स्पष्ट नहीं दिखाई देती हैं l दूर कि वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटीना से पहले ही बन जाती है l इस दोष को अवतल लेन्स (Concave Lens) से बने चश्मे द्वारा ठीक किया जाता है, जिससे दूर वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटीना पर बनने लगता है l
निक्तान्धता दोष (Hypermetropia) :-दूसरे दोष को न्क्तान्धता दोष (Hypermetropia) कहते हैं इस दोष में दूर की वस्तुएं तो साफ दिखाई देती हैं, लेकिन पास कि वस्तुएं नहीं दिखतीं l कम दुरी पर रखी हुई वस्तुओं का प्रतिबिम्ब रेटीना के पीछे बंटा है l इस दोष को उत्तल लेन्स (Convex Lens) से बने चश्मों द्वारा दूर किया जाता है l जिससे वस्तुओं का प्रतिबिम्ब फिर रेटीना पर बनने लगता है
अबिन्दुकता (Astigmatison) :- तिश्रे दोष को अबिन्दुकता (Astigmatison) कहते हैं l इस दोष में वस्तु का प्रतिबिम रेटीना में भिन्न-भिन्न दुरी पर बंटा है l इसलिए वस्तु स्पष्ट नहीं दिखाई देती l इस दोष से छुटकारा पाने के लिए बेलनाकार लेन्सों (Cylindrical Lens) से बने चश्मों का प्रयोग किया जाता है l
इस प्रकार चश्मों के द्वारा मनुष्य स्पष्ट रूप से देख सकता है l कम दृष्टि वाले लोगों के चश्मे एक वरदान सिद्ध हुए हैं l इसके अतिरिक्त आंखों को सूरज कि तेज रोशनी से बचने के लिए धूम के चश्मों का प्रयोग किया जाता है l इन  चश्मों में रंगीन शीशे होते हैं, जो धूप में उपस्थित पराबैगनी किरणों (Ultra Violet Rays) को आंखों में नहीं जाने देते हैं l पराबैंगनी किरणें आंखों के लिए काफी घातक होती हैं l ............

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