कभी-कभी तेज़ वर्षा के साथ बर्फ के गोल-गोल
टुकड़े भी गिरने लगते हैं l आमतौर पर बर्फ के इन्हीं टुकड़ों को ओले (Hail) कहा जाता
है l ओले अक्सर गर्मियों के मौसम में दोपहर के बाद गिरते हैं l सर्दियों में भी
ओले गिरते देखे गए हैं l जब ओले गिरते हैं, तो बादलों में गड़गड़ाहट और बिजली की चमक
बहुत अधिक होती है l ओले आकार में छोटे और बड़े दोनों ही हो सकते हैं l क्या आप
जानते है कि ओले कैसे बनते हैं ?
बादलों से वर्षा की बूंदें जब धरती की और
गिरती हैं, तो उन्हें कभी-कभी ठन्डे क्षेत्र से गुजरना पड़ता है l कम तापमान के कारण
वर्षा की ये बूंदें जमकर बर्फ यानि हिमकणों में बदल जाती हैं l कभी-कभी ऐसा भी
होता है कि इन गिरते हुए हिमकणों को वायुमंडल में वायु की तेज़ी से ऊपर उठती हुई
कोई धारा ऊपर उठा ले जाती है, ये जमी हुई बूंदें जब उस क्षेत्र में पहुंच जाती
हैं, जहां वर्षा की बूंदें पहले से ही बननी शुरू हुई थीं, तो इन हिमकणों में पानी
के कण चिपकने लगते हैं l जब ये फिर निचे की और गिरती हैं, तो वायु के ठन्डे
क्षेत्र से गुजरने पर जम जाती है, तो ये ओले के रूप में जमीन पर गिरने लगते हैं l
यदि आप किसी ओले को काटकर ध्यानपूर्वक देखें, तो उसमें पारदर्शक और अध्परदर्शक
बर्फ की कई सतहें दिखाई देंगीं l ये परतें पानी के बार-बार जमने से ही बनती हैं l
गिरते हुए ओलों का व्यास l सेंटीमीटर से लेकर
7-8 सेंटीमीटर तक होता हैं l इनका वज़न लगभग 500 ग्राम तक होता है l 6 जुलाई सन १९२८
को पॉटर नेब (Potter Neb) नामक स्थान पर एक बहुत बड़ा ओला गिरा, जिसका वज़न 717
ग्राम था l इसका व्यास 14 सेंटीमीटर (5.5 इंच) था l
ओलों के गिरने से काफी नुकसान हो जाता है l
यहां तक कि ओलों के गिरने से लगी चोट के कारण जानवर और आदमी भी मरते देखे गए हैं l
ओलों का गिरना फसल के लिए हानिकारक होता है l इनसे खेतों में खड़ी फसल नष्ट हो जाती
है l 30 अप्रैल 1888 को मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) में ओले गिरने से 246 व्यक्तियों
की मृत्य हो गई थी l ..............
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