एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) विशेष प्रकार की
ओषधियाँ हैं, जो हमारे शरीर में रोग पैदा करने वाले किटाणूओं का विनाश करती हैं l
ये रोग से लड़ने में हमारे शरीर की मदद करती हैं l आजकल अनेक बीमारियों का इलाज
करने के लिए इन ओषधियों को प्रयोग में लाया जाता है l
एंटीबायोटिक्स शव्द एंटीबायोसिस से बना है l
1880 में इसका प्रयोग एक जीवित प्राणी द्धारा दुसरे जीवित प्राणी को नष्ट करने के
अर्थ में किया जाता था l आजकल एंटीबायोटिक्स का अर्थ सूक्ष्म जीवाणुओं के शरीर से
प्राप्त रासायनिक पदार्थों (Chemical Substances) से है, जो दुसरे सूक्ष्म
जीवाणुओं को नष्ट कर दे सकते हैं l सर्वप्रथम एंटीबायोटिक्स शव्द का प्रयोग सन
1942 में किया गया था l सबसे पहले एंटीबायोटिक्स ओषधि पेनिसिलीन थी, जो निमोनिया,
खांसी, गले की सुजन, फोड़े फुंसियों का इलाज करने में बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध हुई
l स्ट्रेप्टोमाइसीन एक दूसरी एंटीबायोटिक्स ओषधि है, जो तपैदिक के इलाज के लिए
प्रयुक्त होते है l इसके अलावा एम्पिसिलीन, टेट्रासाइकिलीन, क्लोरोमाइसेलीन आदि
अनेक एंटीबायोटिक्स ओषधियाँ हैं, जो बहुत सी बीमारियों को समाप्त करने के लिए
प्रयोग में लाई जाती हैं, जब शरीर में एंटीबायोटिक्स को इंजेक्शन द्धारा या कैपसूल
द्धारा प्रवेश कराया जाता है, तो ये रोग फैलाने वाले अनेक सूक्ष्म जीवाणुओं को
नष्ट कर देते हैं l
क्या आप जानते है कि एंटीबायोटिक्स किससे
बनाई जाती हैं ? अधिकतर एंटीबायोटिक्स जीवाणुओं और फफूंदियो से बनाई जाती हैं l
अभी तक पूरी तरह से वैज्ञानिकों को यह पता नहीं है कि एंटीबायोटिक्स किस प्रकार से
रोगों के किटाणुओं को समाप्त करती है l कुछ वैज्ञानिकों का विचार है कि
एंटीबायोटिक शरीर में पहुंच कर रोग के किटाणुओं तक आक्सीजन नहीं पहुंचने देती और
आक्सीजन की अनुपस्थिति में रोग के कीटाणु मर जाते हैं l कुछ वैज्ञानिकों की धारणा
है कि एंटीबायोटिक्स रोग के कीटाणुओं को शरीर से भोजन नहीं लेने देती हैं l एंटीबायोटिक्स
का कम करने का तरीका चाहे कुछ भी हो, लेकिन यह एक सत्य है कि ये ओषधियाँ मानव जाति
के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुई हैं l इनके प्रयोग से संसार में हर वर्ष लाखों
बीमार लोगों को जीवन प्राप्त होता है l
आजकल एंटीबायोटिक्स का महत्व बढ़ गया है l
1930 मे अमेरिका में निमोनिया से मरने वालों की संख्या 20% से 85% तक थी l 1960
में यही संख्या 5% रह गई l इसी तरह टाइफाइड से मरने वालों की संख्या 10% से कम
होकर 2% रह गई है l इनके द्धारा छूत की बीमारियों को भी रोका जा सकता है l गले का
रोग गठिया-बुखार (Rheumatic Fever), यौन रोग (Venereal Diseases) आदि को भी रोका
जा सकता है l
एंटीबायोटिक्स का शरीर पर कुप्रभाव भी हो
सकता हैं l अधिक संवेदनशीलता के कारण त्वचा के ऊपर दाग उभर सकते हैं l कभी-कभी रोग
के जीवाणुओं पर इनका असर भी नहीं होता l ............
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें