बुधवार, 18 दिसंबर 2013

Tail Stars / Comets / पुच्छल तारे

     पुच्छल तारे या धूमकेतु (Comets) आकाश में चमकाने वाले वे तारे हैं , जिनकी पूंछ होती है l ये ग्रहों और दुसरे तारों से बिल्कुल भिन्न होते हैं l पुच्छल तारे भी सौर परिवार के सदस्य हैं और ये निश्चित कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं l किसी भी पुच्छल तारे के दो भाग होते हैं l एक सर (Head) और दूसरा पूंछ (Tail) l सौर परिवार के ये बहुत ही विशाल आकार के तारे हैं l बहुत से पुच्छल तारो का सर ही सूर्य से कई गुना बड़ा होता है l इनकी पूंछ लाखों मील लम्बी होती है l इनकी पूंछ हमेशा सूर्य की विपरीत दिशा में होती है l
     वास्तव में पुच्छल तारे चट्टानों, धुल और गैसों से मिलकर बने होते हैं l इनकी पूंछ में अमोनिया गैस, मीथेन गैस, जलवाष्प और बर्फ होती है l इनकी पूंछ की चमक सूर्य के प्रकाश के कारण होती है l आकाश में अलग-अलग पुच्छल तारे अलग-अलग समय के बाद दिखाई देते हैं l इनकी संख्या हजारों में है l कुछ इतने चमकीले हैं जो खली आंखों से दिखाई डे जाती है, लेकिन कुछ इतने कम चमकीले हैं जिनको केवल दूरदर्शी यंत्रों की सहायता से ही देखा जा सकता है l वैज्ञानिक अपने दूरदर्शी यंत्रों की सहायता से निरंतर इनका अध्ययन कर रहे हैं l अनुमानत: हर वर्ष लगभग नौ नए पुच्छल तारों का पता लग जाता है l
     हैली (Halley) पुच्छल तारा आकाश का एक बहुत बड़ा और प्रसिद्ध पुच्छल तारा है यह लगभग हर 75.5 वर्ष के बाद पृथ्वी के नजदीक आता है और दिखाई देने लगता है l इस तारे को सबसे पहले सन् 1682 में इंग्लैंड के खगोलशास्त्री एडमोंड हैली (Edmond Halley) ने देखा था l उन्हीं के नाम पर इसका नाम ‘ हैली ’ पुच्छल तारा रख दिया गया है l इसके बाद यह 1758, 1835 और 1910 मे देखा गया l सितम्बर 1909 से लेकर जुलाई 1911 तक शक्तिशाली दूरदर्शी यंत्रों से इसके विषय में बहुत से अध्ययन किए गए l अब आशा की जाती है कि यह सन् 1986 में दिखाई दिया l कुछ ऐसे पुच्छल तारे हैं जो कुछ वर्षों बाद पृथ्वी के पास आते हैं और दिखाई देते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो हजारों वर्ष बाद पृथ्वी के पास आते हैं अर्थात् उन्हें अपनी कक्षा की परिक्रमा में हजारों वर्ष का समय लग जाता है l कभी-कभी पुच्छल तारे धरती के पास आकार चूर-चूर हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप उल्का-धुल धरती पर गिरती रहती है l

     पुराने समय में पुच्छल तारों का दिखना बहुत ही अशुभ मन जाता था इनके दिखने पर लोगों के मन में आशंका हो जाती थी कि अकाल या कोई महामारी पैलने वाली है, लेकिन आज इनके विषय में कोई ऐसी धारणा नहीं है l अब तो यह मन जाता है कि इनका जन्म किसी ग्रह या उपग्रह से फटने वाले ज्वालामुखियों की धुल के कारण हुआ है l कुछ वैज्ञानिक ऐसा भी मानते है कि इनकी उत्पति सौर मंडल के साथ ही हुई l अभी तक इनकी उत्पति का सही-सही ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाया है l ............

2 टिप्‍पणियां:

AYURVEDA / आयुर्वेद

  आयुर्वेद भारतीय उपमहाद्वीप में ऐतिहासिक जड़ों के साथ एक वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली है। आयुर्वेद का सिद्धांत और व्यवहार छद्म वैज्ञानिक है। भ...