एक
रात जबर्दस्त तूफान आया। पानी के तेज बहाव
से एक बड़ा पत्थर टूट कर सड़क के बीचों-बीच आ गिरा। तभी एक ठेला वाला आ गया। जहां पत्थर गिरा था, उसने ठेला रोक लिया। वह किसी के आने की प्रतीक्षा
करने लगा। थोड़ी देर बाद एक दूसरा ठेला आ पहुंचा। उस पर जलावन की लकड़ियां लदी थीं। उसने पहले वाले
ठेले से कहा- तुमने अपना ठेला सड़क के बीच
क्यों खड़ा किया है,
हटाओ
ताकि मैं गुजर सकूं।
पहले ठेले वाले ने कहा- तुम्हें जल्दी हैं तो पहले वहां जाकर यह चट्टान हटाओ। लकड़ी वाले ने कहा क्यों
न किसी शक्तिशाली आदमी की प्रतीक्षा करें। वही हमारा रास्ता साफ करेगा। दोनों साथ-साथ बैठ गए।
तभी एक घोड़ा गाड़ी वाला वहां आ पहुंचा। वह काफी बूढ़ा था। जब उसे पता चला कि दोनों ठेले यहां क्यों खड़े हैं तो वह पत्थर के इर्द-गिर्द चहलकदमी करने लगा। समय बीतता रहा। अब वहां एक काफिला इकट्ठा हो गया। इतने में एक संन्यासी वहां आ पहुंचे । वे सब को परेशान देख बोले-
तभी एक घोड़ा गाड़ी वाला वहां आ पहुंचा। वह काफी बूढ़ा था। जब उसे पता चला कि दोनों ठेले यहां क्यों खड़े हैं तो वह पत्थर के इर्द-गिर्द चहलकदमी करने लगा। समय बीतता रहा। अब वहां एक काफिला इकट्ठा हो गया। इतने में एक संन्यासी वहां आ पहुंचे । वे सब को परेशान देख बोले-
तुम
लोग अपनी जवाबदेही दूसरों पर डालने की कोशिश मत
करो। आओ सब मिलकर प्रयास करो। संन्यासी ने सबसे पहले पत्थर हटाना शुरू किया।
उन्हें देख दूसरों ने भी कोशिश की l और इस तरह पत्थर हट गया। संन्यासी ने कहा-हम हर समय दूसरों का
मुंह देखते रहते हैं। हमें लगता है कोई आकर
हमारी समस्या हल करेगा। कोई आगे बढ़कर खुद पहल नहीं करता। अगर हम ऐसा करने लगें तो जीवन की समस्याएं
अपने आप हल हो जाएंगी।
“ समाप्त ”
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