पुनर्जन्म
का अर्थ है पुन: नवीन शरीर प्राप्त होना। प्रत्येक मनुष्य का मूल स्वरूप आत्मा है न कि शरीर। हर बार
मृत्यु होने पर मात्र शरीर का ही अंत होता
है। इसीलिए मृत्यु को देहांत (देह का अंत) कहा जाता है। मनुष्य का असली स्वरूप आत्मा, पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए पुन:
नया शरीर प्राप्त
करता है। आत्मा तब तक जन्म-मृत्यु के
चक्र में घूमता रहता है, जब तक कि उसे मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। मोक्ष
को ही निवार्ण, आत्मज्ञान, पूर्णता एवं कैवल्य आदि नामों से भी जानते हैं।
पुनर्जन्म का सिद्धांत मूलत: कर्मफल का
ही सिद्धांत है। मनुष्य के मूलस्वरूप आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा के साथ मिलना है। जब तक आत्मा का
परमात्मा से पुनर्मिलन (मोक्ष) नहीं हो जाता। तब तक जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म-मृत्यु का क्रम लगातार चलता रहता है।प्रामाणिकताहिंदूओं में अत्यंत
प्रचलित एवं प्रसिद्ध अवतार भगवान श्रीकृष्ण
ने पुनर्जन्म की मान्यता को सत्य बताया है। गीताकार श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मेरे बहुत से
जन्म हुए हैं और तुम्हारे भी। मैं उन्हें
जानता हूं लेकिन तुम नहीं जानते। एक स्थान पर ईसा मसीह ने कहा है कि मैं इब्राहीम से पहले भी था। अमर
आत्माइस प्रकार हम देखते हैं कि एक ही आत्मा
अलग-अलग शरीरों मे जन्म ग्रहण करता है। विज्ञान की भाषा में कहे तो कह सकते है कि एक प्रकार की ऊर्जा है
जो न तो कभी जन्म लेता है और न ही कभी नष्ट
होता है। भौतिक ऊर्जा और आत्म ऊर्जा में फर्क इतना ही है कि आत्म ऊर्जा चेतनायुक्त होती है जबकि भौतिक
ऊर्जा चेतना से रहित होती है।कर्मफल एवं
जन्म-मरण का चक्रपुनर्जन्म का वास्तविक अर्थ है आत्मा अपनी आवश्यकता के अनुसार एक नया शरीर धारण करना। हमारा
भौतिक शरीर पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। मृत्यु के पश्चात शरीर पुन: इन्हीं पांचों तत्वों में विलिन हो जाता है।
किसी कारण, आवश्यकता या परिस्थिति के अनुसार यह आत्मा शरीर को छोड़कर मुक्त
हो जाता है। एक निर्धारित समय तक मुक्त
रहने के पश्चात आत्मा अपने पूर्व कर्मों एवं संस्कारों के अनुसार पुन: एक नया शरीर प्राप्त करता है। जब
तक कि समस्त पिछले कर्मों एवं संस्कारों
का पूर्णत: समापन नहीं हो जाता, आत्मा
को जन्म मृत्यु के चक्र में
घूमना पड़ता है।वैज्ञानिक आधारपुनर्जन्म की पूर्णत: वैज्ञानिक मान्यता के प्रति कुछ लोगों के मन में संदेह
होता है। कुछ तो इस मान्यता को पूर्णत: काल्पनिक एवं अवास्तविक मानते हैं। उनका कहना है कि यदि पहले भी
हमारे जन्म हो चुके हैं तो हमें उनकी याद
क्यों नहीं है। संदेह रखने वालों को सोचना
चाहिए कि मनुष्य इसी जन्म की तमाम बातों, घटनाओं
एवं विचारों से इतना अशांत
एवं तनावग्रस्त हो जाता है कि यदि पूर्व जन्मों की बातें भी याद रहे तो वह पागल ही हो जाए। यह प्रकृति की
मनुष्य पर असीम कृपा एवं करुणा ही है कि
वह पिछले जन्मों की सारी घटनाएं भुला देती है। यदि पिछले सभी जन्मों की सारी घटनाएं हूबहू याद रहे तो मनुष्य
अपना मानसिक संतुलन बनाए नहीं रख सकता।
यही कारण है कि प्रकृति मनुष्य को पिछली घटनाओं और दुखों को भुलाकर एक नई आशाभरी शुरुआत करने का
अवसर प्रदान करती है।
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