ब्रह्मोस सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल है। क्रूज़ मिसाइल उसे कहते हैं जो कम ऊँचाई पर तेजी से उड़ान भरती है और रडार की आँख से बच जाती है। ब्रह्मोस की विशेषता यह है कि इसे जमीन से, हवा से, पनडुब्बी से, युद्धपोत से यानी कि लगभग कहीं से भी दागा जा सकता है। यही नहीं इस मिसाइल को पारम्परिक प्रक्षेपक के अलावा उर्ध्वगामी यानी कि वर्टिकल प्रक्षेपक से भी दागा जा सकता है। ब्रह्मोस के मेनुवरेबल संस्करण का हाल ही में सफल परीक्षण किया गया। जिससे इस मिसाइल की मारक क्षमता में और भी बढोत्तरी हुई है।
ब्रह्मोस भारत और रूस के द्वारा विकसित की गई अब तक की सबसे आधुनिक मिसाइल प्रणाली है और इसने भारत को मिसाइल तकनीक में अग्रणी देश बना दिया है। ब्रह्मोस मिसाइल, रूस की पी-800 क्रूज मिसाइल की प्रौद्योगिकी पर आधारित है।ब्रह्मोस का विकास ब्रह्मोस कोर्पोरेशन के द्वारा किया जा रहा है। यह कम्पनी भारत के डीआरडीओ और रूस के एनपीओ मशीनोस्त्रोयेनिशिया का सयुंक्त उपक्रम है। ब्रह्मोस नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा नदी पर रखा गया है। मिसाइल तकनीक में दुनिया का कोई भी मिसाइल तेज गति से आक्रमण के मामले में ब्रह्मोस की बराबरी नहीं कर सकता। इसकी खूबियाँ इसे दुनिया की सबसे तेज़ मारक मिसाइल बनाती है। यहाँ तक की अमरीका की टॉम हॉक मिसाइल भी इसके आगे नहीं टिक सकती है।
ब्रह्मोस के समुद्री तथा थल संस्करणों का पहले ही सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है तथा भारतीय सेना एवं नौसेना को सौंपा जा चुका है। भारत अगले 10 वर्सो में करीब 2000 ब्रह्मोस मिसाइल, रूस से लिए गए सुखोई लड़ाकू जहाजों के लिए तैयार करवा रहा है ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल है, पर भविष्य में ब्रह्मोस-२ नाम से हाइपर सोनिक मिसाइल भी बनाई जा रही है जो 7 मैक की गति से वार करे में सक्षम होगी। ब्रह्मोस-२ करीब 6,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार के साथ 290 किलोमीटर दूरी तक लक्ष्य भेद सकेगी। भारत अपनी स्वदेशी सबसोनिक मिसाइल निर्भय भी बना रहा है।
ब्रह्मोस गतिशील लक्ष्य को भी निशाना बना सकता है ब्रह्मोस मिसाइल में मेनुवरेबल तकनीक यानी कि दागे जाने के बाद अपने लक्ष्य तक पहुँचने से पहले मार्ग को बदलने की क्षमता। उदाहरण के लिए यदि कोई लक्ष्य स्थिर ना हो और अपना मार्ग बदलता रहता हो तो उसे निशाना बनाना कठीन होता है। पर ब्रह्मोस की इन खूबियों की वजह से यह कार्य मुमकिन हो गया l मेनुवरेबल तकनीक की वजह से ब्रह्मोस लक्ष्य तक पहुँचने के पहले मार्ग को बदल सकती है l
ब्रह्मोस हवा में ही मार्ग बदल सकती है और चलते फिरते लक्ष्य को भी भेद सकती है। इसको वर्टिकल या सीधे कैसे भी प्रक्षेपक से दागा जा सकता है।
यह मिसाइल तकनीक थलसेना, जलसेना और वायुसेना तीनों के काम आती है। यह 33 फ़ुट की ऊँचाई पर उड़ान भर सकती है और रडार की पकड में नहीं आती। रडार ही नहीं किसी भी अन्य मिसाइल पहचान प्रणाली को धोखा देने में सक्षम है। इसको मार गिराना लगभग असम्भव है। ब्रह्मोस अमरीका की टॉम हॉक से लगभग दुगनी अधिक तेजी से वार कर सकती है, इसकी प्रहार क्षमता भी टॉम हॉक से अधिक है। आम मिसाइलों के विपरित यह मिसाइल हवा को खींच कर रेमजेट तकनीक से ऊर्जा प्राप्त करती है। यह मिसाइल 1200 यूनिट ऊर्जा पैदा कर अपने लक्ष्य को तहस नहस कर सकती है। अभी कुछ ही समय
पहले ब्रह्मोस को बंगाल की खाड़ी में एक युध्दपोत से प्रक्षेपित किया गया। परीक्षण
को एक मोबाइल प्रक्षेपक से अंजाम दिया गया। मिसाइल ने लक्ष्यों को सफलतापूर्वक भेद
दिया। यह पहली बार है जब ब्रह्मोस का प्रक्षेपण एक नए जहाज पर लगाए गए यूनीवर्सल वर्टिकल
लांचर से किया गया। अधिकारी ने कहा, आज अधिकतर जहाजों
पर वर्टिकल लांचर लगे हुए हैं ऐसे में ब्रह्मोस का यह परीक्षण काफी मायने रखता है।
डीआरडीओ ने नौसैना के लिए देश में बने सीकर (Seeker) और बूस्टर (Booster) से लैस ब्रह्मोस मिसाइल का सफल परीक्षण किया है l इन दोनों यंत्रों को देश में विकसित करने से काफी पैसे बचेंगा l क्योंकि अभी तक ये रूस से आयात होता था l लेकिन ये आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत बनाया गए यंत्र हैं l ब्रह्मोस मिसाइल के चार नौसैनिक वर्जन हैं, जिनका इस्तेमाल भारतीय नौसेना कर रही है l
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