(इस कविता के माध्यम से मै आपको बताने का प्रयत्न कर रहा हु की
जीवन-राह पर चलते रहने में ही जीवन का साथकता है, भाव यह है कि निरंतर कर्म करते
रहना ही जीवन का उद्देश्य है, आराम या मुकित मानव-जीवन का उद्देश्य कदापि नहीं, इस
कविता से आप को निरंतर कर्म करने की प्रेरणा मिलता रहे .)
मुस्किल राह पर चलना रे !
गति जीवन का चरम लक्ष्य
है !
विरति, मुक्ति ,सब छलना
रे !
मुस्किल राह पर चलना रे !
‘रण में सहसा मरण महत है ,
पर क्या वह जीवन का ‘सत’ है ?
जीवन तो बलि-राह शाश्वत है ,
अणु-अणु करके गलना रे !
मुस्किल राह पर चलना रे !
सरल, चिता-सैया पर सोना
,
कठिन, दुःख सहना-सब खोना
,
मिट जाना पर विकल न होना ,
तिल-तिल करके जलना रे !
मुस्किल राह पर चलना रे !
- श्री नरेश राय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें