सोमवार, 30 सितंबर 2013

Priceless Money / अनमोल धन


बहुत पुराणी कहानी है एक बार एक संत किसी नदी के किनारे खड़े अत्यंत ध्यान से उसकी लहरों को देख रहे थे। इतने में एक दरिद्र ब्राह्मण उनके पास पहुंचा और बोला, 'हे महान संत! मैं धन के अभाव में दर-दर भीख मांग रहा हूं। मेरे बच्चे भूख से बिलख रहे हैं। मेरा जीवन अत्यंत दुखमय हो गया है। यदि आप जैसे तपस्वी संत की कृपा दृष्टि हो जाए तो मेरी स्थिति सुधर सकती है।' संत ने अत्यंत स्नेह से पूछा, बताओ मैं तुम्हारी किस तरह मदद कर सकता हूँ। निर्धन व्यक्ति ने कहा, आप मेरे लिए कुछ धन की व्यवस्था करा दीजिए। संत ने कहा, मेरे पास तो ऐसा धन है नहीं, लेकिन नदी के उस पार, जहाँ बालू का ढेर है, वहां जाकर देखो। शायद तुम्हारा भाग्य चमक जाए। कल मैंने वहां एक पारस मणि पड़ी देखी थी।

निर्धन व्यक्ति यह जानकारी पाकर अत्यंत प्रसन्न हुआ और तुरंत बालू के ढेर की ओर दौड़ गया। वहां जाकर वह पारस मणि को खोजने लगा। थोड़ी देर में उसे वास्तव में वह मणि पड़ी हुई मिल गई। उस ब्राह्मण के हाथ में एक लाठी थी, जिसके किनारे पर थोड़ा लोहा लगा हुआ था। उसने उस लोहे को पारस मणि से छुआ दिया, सारा लोहा, सोने में बदल गया। उस निर्धन के आनंद की सीमा न रही, वह खुशी से नाचने लगा। लेकिन तभी अचानक उसके मन में एक खयाल आया, आखिर संत के पास ऐसी कौन सी चीज है, जिसकी वजह से उन्हें पारस मणि भी व्यर्थ जान पड़ी। वह फिर संत के पास वापस पहुंचा और बोला, 'हे करुणामय संत! इस बार मैं कुछ मांगने नहीं आया हूँ, सिर्फ एक जानकारी चाहता हूँ। कृपया यह बता दीजिए कि वह कौन सी चीज है जिसे पाकर आपने पारस मणि को भी पत्थर की तरह तुच्छ समझा और उसे आप वहीं छोड़कर आ गए।

संत ने केवल तीन अक्षरों का एक छोटा सा शब्द अपने मुख से निकाला- 'संतोष!'


' समाप्त '

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